Monday 25 July 2011

आखिर कब तक ????????

भारत की राजनीति इस समय जिस संविधान के अनुसार चल रही है उसे सेकुलर या पंथ निरपेक्ष तो घोषित कर दिया गया है किन्तु स्वयं उस की कई एसी धराये बरक़रार है जो पंथ विशेष के अनुयायियों को लाभ पहुचाती है सविधान की धारा ३० अल्पसंख्यको को अपनी अलग शेक्षिक संस्थाए चलने की अनुमति देती है |इन्हें सरकार की वित्तीय सहायता भी दी जाती है किन्तु इनके सञ्चालन पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता |धारा ४४ के अनुसार पूरे देश के लिए सामान नागरिक कानून बनाने चाहिए किन्तु चूँकि कुछ अल्पसंख्यक समुदायों को इस पर आपत्ति है इस लिए सरकार आज तक एक सामान नागरिक कानून नहीं बना पाई |...कश्मीर में उर्दू जुबान केवल .२ प्रतिशत जनसँख्या की मात्र भाषा है , शेष लोग डोगरी या कश्मीरी बोलते है किन्तु मजहब के नाम पर कश्मीर की मातृभाषा उर्दू ही होगी ........क्यों??????????
केरल में मशहूर साम्यवादी नेताएवं वहा के मुख्यमंत्री नम्बुदरीपाद ने अपने दल को वोट दिलवाने के उद्देश्य से केरल में मुस्लिम बहुल एक इलाके को अलग जिला और निर्वाचन क्षेत्र बनाने का श्रेय इन्ही महाशय को है लेकिन बावजूद इसके वे अपने को एवं अपने दल को साम्प्रदायिकता का कट्टर विरोधी मानते है
मिजोरम में ईसाइयों को प्रसन्न करके उनका वोट प्राप्त करने के उद्देश्य से राष्ट्रिय कांगेस ने अपने चुनावी घोषणा पात्र में यहाँ तक कह दिया था की कांग्रेस अगर सत्ता में आएगी तो ईसाइयों को पूरी छुट रहेगी के वे हिन्दुओ का धर्मान्तार्णकरके उन्हें इसाई बनाये|
स्वतंत्रता के कुछ वर्ष बाद सन १९६१ में भी राजनितिक लाभ के लिए मजहब या पूजा स्थलों के दुरूपयोग पर रोक लगाने का प्रश्न संसद में उठा था
उस समय भी श्री अटल बिहारी बाजपयी जी ने कहा था ........ मेरा नम्र निवेदन है की हमकिसी भी संप्रदाय की साम्प्रदायिकता को बर्दाश्त न करे , चाहे वहा कम संख्या वालो की हो ,चाहे अनेक संख्या वालो की............ मगर इसके विपरीत देखा गया की पंजाब के गुरुद्वारों में पुलिस नहीं जा सकी , किन्तु चंडीगड़ के आर्यसमाज में पुलिस कर गयी .... मस्जिदों में चुनाव जितने के फतवे जारी किये जा सकते है |विदेशी मिशनरी गिरिजाघरो में बैठकर राष्ट्रिय एकता का विच्छेदन करने के लिए षड्यंत्र रच सकते है ............ फौजदारी के एक मामले में इमाम अब्दुल्ला बुखारी के सुपुत्र छोटे इमाम ने तो न्यायलय के बार बार नोटिस की अवमानना करते हुए जमा मस्जिद से ये एलान किया की वे कोर्ट के सामने पेश नहीं होंगे सरकार में दम हो तो पकड़वा कर देख ले लेकिन वाही हिन्दुओ की माननीय साध्वी ,. साध्वी प्रज्ञा कोउलटे सीदे इल्जाम लगाकर कष्टप्रद जिन्दगी जीने को मजबूर कर रखा हैऔर अब सभी ने  ५ तारीख की रात को १ बजे  रामलीला मैदान में रावण राज  देखा ही लेकिन हम हिन्दू कुछनही कर पा रहे है आखिर कब तक .....हम हिन्दू अपने ही देश में अपने संतो का वीरो का अपमान सहते रहेगे .............. कब हम अपने देश में स्वाभिमान एवं पूर्ण अधिकारों के साथ जी पायेगे आखिर कब ................... कब ........... कब .............. आखिर कब तक ????????
माधवी गुप्ता

वीर बलिदानिनी ज्योतिर्मयी गांगुली .....


भारत भूमि वीर- वीरांगनाओ की जन्म भूमि , कर्म भूमि है बहुत से वीरो ने अपने लहू से इस पवित्र भूमि को अलंकृत किया है अपने बलिदानों से सजाया है अपने त्याग से संवारा है ऐसी ही एक बलिदानिनी ""ज्योतिर्मयी गांगुली ''"श्री द्वारिकानाथ गांगुली की बेटी की भी बलिदान कथा विलक्षण है यों तो वे सतत ही आज़ादी की लड़ाई में भाग लेती रही परन्तु आज़ादी की पुकार पर अपनी सरकारी नौकरी को ठुकराकर ,सामाजिक कार्यो में भाग लेते हुए वे सन १९३० के आन्दोलन में शामिल हुयी ,,,,, आगे सन १९४५ के २१ नवम्बर को कलकत्ता में छात्रो का एक जलूस निकला तो ज्योतिर्मयी ने आगे जाकर जुलूस का नेतृत्व किया | इस जुलूस का कारण,, आज़ाद हिंद फौज के सैनिको की रिहाई की,, ब्रिटिश सरकार से मांग थी जिन पर कि विद्रोह का आरोप था वहां नारे गूंज रहे थे कि --
आज़ाद हिंद फौज के सैनिको को
रिहा करो !रिहा करो !
आज़ाद हिंद फौज का गीत भी चल रहा था और छात्र पूरी तन्मयता और जोश के साथ उसे गा रहे थे कि -----
कदम कदम बढ़ाये जा !
वतन के गीत गाये जा
यह जिन्दगी है कौम की ,
कौम पर लुटाये जा.......|
इस जलूस पर ब्रिटिश सैनिको ने गोली चलायी ,जिनमे एक छात्र घायल होकर शहीद हो गया | अगले दिन २२ नवम्बर १९४५ को ज्योतिर्मयी गांगुली उस शहीद छात्र का शव अपने कब्ज़े में लेकर शोक सभा करने एक जुलुस लेकर चली उस जुलुस का नेतृत्व भी वही कर रही थी ----इससे चिढ़कर उनके ऊपर एक फौजी ट्रक चढ़ा दिया गया जो उन्हें और जुलूस को रौंदता चला गया,, वे शहीद हुयी उन्होंने अपने बलिदान से मातृभूमि के पार्टी अपने कर्तव्य को पूरा करने का प्रयास किया और आगे आने वाली पीढियों को भारत भूमि की स्वतंत्रता एवं रक्षा का दायित्व सौपा ,,,,,,,पर ,,,,,पर ,,,,,
क्या हम उनके सौपे गए दायित्व को पूरा कर पा रहे है ??????
क्या हम उनका दिया गया बलिदान सार्थक कर पायेगे ???????
माधवी गुप्ता

जागो भारतीयों जागो ......


हाय रे भारत के मुर्ख लोगो जब बच्चे जन्म दिन की ख़ुशी में दीप जलने चाहिए वहां पर ये दीप बुझाने जेसी मुर्खता पूर्ण बात हम हिंदुत्व की सकारात्मक सोच अर्थात जीवन में वर्ष की वृद्धि को ज्ञान की अनुभवों की जिम्मेदारियों के अहसास से लेते है ......वही ये नकारात्मक सोच जीवन का अंत अर्थात मृत्यु याद दिलाती है जनम दिन जैसी ख़ुशी की बेला में मनहूसियत का अहसास .............
मृत्यु तो निश्चित है ही सभी जानते है परन्तु जीवन जी कर सुकार्यो में व्यतीत करना देश, समाज के उत्थान के लिए कार्य करना जीवन है जीवन का क्षण- क्षण ख़ुशी ,स्फूर्ति चेतना से भरा हो न ऐसी आने वाले भविष्य की कमाना हो ऐसी दूरगामी और सकारात्मक सोच बच्चे के लिए रखनी होगी .........नहीं तो ये बच्चे मोमबत्तिया बुझा बुझा कर खाओ पियो और एश करो की तर्ज़ पर बनते जा रहे है बनते जायेगे और ओल्ड एज होम बनाते जायेगे और बूढ़े -माँ बाप की सेवा भूलकर उन्हें बोझ समझकर एकाकी जीवन जीने को मजबूर कर देगे,,,,, जागो भारतीयों जागो ......

क्या अभी बलिदान बाकी है ???????????



१८४९ में पंजाब से सिख राज्य की समत होने से पूर्व गौ हत्या पर पूरी तरह प्रतिबन्ध था |अंग्रेजो का राज्य स्थापित होते ही स्थान स्थान पर बुचढ़खाने खुल गए और गौ मांस खुले आम बिकने लगा |अमृतसर के हरी मंदिर के निकट बूचड़ खाना खुलने से कुछ कूके बहुत उत्तेजित हो गए |कुछ कुको ने वहा पहुच कर कसाइयो की हत्या कर दी इसी प्रकार की घटना मलेर कोटला में घटित हुयी|........ भैणी साहब में एकत्रित कूकों को जब यह समाचार मिला की वहां एक थानेदार ने एक बैल की खुले आम हत्या करवाई है ,तो उनमे तीव्र उत्तेजना फ़ैल गयी |,,,,,,,,,,बाबा रामसिंह की आगया लिए बिना १४० उत्तेजित कूकों ने मलेर कोटला में बुचड़ो की बस्ती पर आक्रमण कर दिया |पुलिस मुठभेड़ में ७ कुके शहीद हो गए और शेष बंदी बना लिए गए...... |इनमे से ४९ को एक दिन और १७ को दूसरे दिन तोपों से उड़ा दिया गया |
यह था गुलाम भारत के शहीदों का इतिहास ,,,,,,, पर आज हम स्वतंत्र है, लेकिन क्या हम हिन्दुओ की स्थिति में कुछ परिवर्तन आया है?? नहीं ......अभी हाल ही में मायावती सरकार ने कितने और बूचड़ खाने खोलने की अनुमति दे दी है | हिन्दू संस्कृति तो किसी भी जीव की हत्या की पक्षधर नहीं है,,,,,, पर फिर भी गौ को माँ के रूप में माननेके कारण गौ हत्या के सख्त विरोधी है ,,,,पर इसका तो समर्थन कोई भी नहीं करेगा ,,,,,,वेसे तो न जाने कितने संगठन टीवी पर और सडको पर प्रचार के लिए उतर आते है ,कि हिरन मत मारो,, चीता बचाओ ,,घड़ियाल खतरे में,, लेकिन गौ हत्या के विषय में बोलने के लिए किसी संगठन के मुह में जबान नहीं रहती,,,, कोई नेता नही आता ,,कोई मुम्बई का ढोंगी नहीं आता ,,,,,,,,,,,,,, हाँ अगर कोई भूले से आगया तो उसे साम्प्रदायिक ,भगवा ,हिन्दू आतंकी ,धार्मिक भेदभाव बढ़ाने वाला मज़हबी और न जाने कितने आरोपों से प्रताड़ित किया जाता है यातनाये और प्रतिबन्ध अलग से ,,,,,,,,
वेसे जालियावाला बाग़ हत्या कांड की पुनरावृत्ति तो अभी ४ तारीख की रात को देखीही थी ,,,,,,,,,
क्या अब फिर कुछ और कूकों को तोपों से भी उड़ाया जायेगा,,
क्या अभी बलिदान बाकी है ???????????

गद्दारों के सींग नहीं होते..............



मनन- चिंतन , ज्ञान- अध्धयन,, धर्म -निति ,अच्छा- बुरा ,सही -गलत ये सब विचार बिंदु हम हिन्दू पिछले ६३ वर्षो से कर रहे है क्या पाया ,,,,,,,,,,,जलालत ,,धर्म का उपहास संस्कृति का लोप स्वार्थ विदेशियों की लूट,,, अपने ही देश में सौतेला व्यव्हार...  पाबन्दियाँ ,,,,,
क्यों आखिर क्यों ????????
करीब १०० करोड़ लोग इन गिने चुने लोगो को सबक नहीं सिखा सकते क्या ,,क्यों ??????
पर अब असर आ रहा है और दिख भी रहा है ४ तारीख के बाद से ,,,,,,,,,,,,,क्यों इन गद्दारों को क्यों डायरिया हुआ है,,,, क्यों  कि ये गद्दार है,,
और गद्दारों के   सींग  नहीं होते...............

Wednesday 22 June 2011

क्या अभी बलिदान बाकी है ???????????

१८४९ में पंजाब से सिख राज्य की समत होने से पूर्व गौ हत्या पर पूरी तरह प्रतिबन्ध था |अंग्रेजो का राज्य स्थापित होते ही स्थान स्थान पर बुचढ़खाने खुल गए और गौ मांस खुले आम बिकने लगा |अमृतसर के हरी मंदिर के निकट बूचड़ खाना खुलने से कुछ कूके बहुत उत्तेजित हो गए |कुछ कुको ने वहाँ पहुँच  कर कसाइयो की हत्या कर दी इसी प्रकार की घटना मलेर कोटला में घटित हुयी|........ भैणी साहब में एकत्रित कूकों को जब यह समाचार मिला की वहां एक थानेदार ने एक बैल की खुले आम हत्या करवाई है ,तो उनमे तीव्र उत्तेजना फ़ैल गयी |,,,,,,,,,,बाबा रामसिंह की आगया लिए बिना १४० उत्तेजित कूकों ने मलेर कोटला में बुचड़ो की बस्ती पर आक्रमण कर दिया |पुलिस मुठभेड़ में ७ कुके शहीद हो गए और शेष बंदी बना लिए गए...... |इनमे से ४९ को एक दिन और १७ को दूसरे दिन तोपों से उड़ा दिया गया |
यह था गुलाम भारत के शहीदों का इतिहास ,,,,,,, पर आज हम स्वतंत्र है लेकिन क्या हम हिन्दुओ की स्थिति में कुछ परिवर्तन आया है नहीं अभी हाल ही में मायावती सरकार ने कितने और बूचड़ खाने खोलने की अनुमति दे दी है | हिन्दू संस्कृति तो किसी भी जीव की हत्या की पक्षधर नहीं है,,,,,, पर फिर भी गौ को माँ के रूप में मानने  के कारण गौ हत्या के सख्त विरोधी है ,,,,पर इसका तो समर्थन कोई भी नहीं करेगा ,,,,,,वैसे  तो न जाने कितने संगठन टीवी पर और  सड़कों  पर प्रचार के लिए उतर आते है कि हिरन मत मारो,, चीता बचाओ ,,घड़ियाल खतरे में,, ,,लेकिन गौ हत्या के विषय में बोलने के लिए किसी संगठन के  मुँह  में जबान नहीं रहती,,,, कोई नेता नही आता ,,कोई मुम्बई का ढोंगी नहीं आता ,,,,,,,,,,,,,, हाँ अगर कोई भूले से आ भी  गया तो उसे साम्प्रदायिक ,भगवा ,हिन्दू आतंकी ,धार्मिक भेदभाव बढ़ाने वाला ,मज़हबी और न जाने कितने आरोपों से प्रताड़ित किया जाता है यातनाये और प्रतिबन्ध अलग से ,,,,,,,,
वेसे जालियावाला बाग़ हत्या कांड की पुनरावृत्ति तो अभी ४ तारीख की रात को देखीही थी ,,,,,,,,,
क्या अब फिर कुछ और कूकों को तोपों से भी उड़ाया जायेगा,,
क्या अभी बलिदान बाकी है ???????????

गद्दारों के सींग नहीं होते ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

 मनन- चिंतन , ज्ञान-  अध्धयन,, धर्म -नीति ,अच्छा- बुरा ,सही -गलत   ये सब विचार बिंदु हम हिन्दू पिछले ६३ वर्षो से कर रहे है क्या पाया ,,,,,,,,,,,जलालत ,,धर्म का उपहास, संस्कृति का लोप ,स्वार्थ, विदेशियों की लूट,,, अपने ही देश में सौतेला व्यव्हार ,, पाबंदियां  ,,,,, क्यों आखिर क्यों ????????
करीब १०० करोड़ लोग इन गिने चुने लोगो को सबक नहीं सिखा सकते क्या??? क्यों ??????
पर अब असर   आ रहा है  और दिखाई भी दे रहा है ४ तारीख के बाद से ,,,,,,,,,,,,, कि क्यों इन गद्दारों को  डायरिया हुआ है,,,, क्यों की ये  गद्दार है और ,,,,,,,,,,,,
गद्दारों के सींग  नहीं होते ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Friday 17 June 2011

राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के प्रति भारत के जन मानस में भ्रान्ति पूर्ण धारणा ,,,,,,,,,,

मै आजतक नहीं समझ पायी की राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के प्रति भारत के जन मानस में एक बहुत ही भ्रान्ति पूर्ण धारणा क्यों है कियह कट्टर हिन्दू और दुसरे धर्म विरोधी नीतियों का पोषक है जबकि अगर भुलावे की या राजनीती की परत हटा कर निष्पक्ष रूप से देखा जाएतो ,,,,,, संघ पंडित" राम प्रसाद बिस्मिल" एवं "अशफाक" के सयुक्त प्रयासों का परिणाम है बंगाल में राजनारायण बासु एवं ज्योतिन्द्र्नाथ ने मिलकर एक गुप्त अनुशीलन नामक समिति बनायीं थी इसमें व्यायाम आदि सिखाया जाता था ऐसे ही इस समिति का कार्य विस्तार हुआ और इसमे बिस्मिल और आशफाक ने कंधे से कन्धा मिलकर करांतिकारी कार्यो में सहयोग दिया था आशफाक अफगानिस्तान मूल के पठान थे जिनके पूर्वज वेदपाठी थे बिस्मिल मूलतः आर्यसमाजी थे इसी लिए शायद दोनों का खून एक साथ कार्य करने को प्रेरित करता रहाहोगा शायद ,,,,,,,, काकोरी कांड ९ अगस्त ,सन १९२५ को हुआ था २६ सितम्बर की रात को जब बिस्मिल गिरफ्तार हुए और उनके सभी साथियों को भी जेल में डाल दिया गया तब निश्चित हो गया था किअब ये क्रांतिकारी छूटने वाले नहीं है और इन्हें सजाए मौत तो होगी ही ,,लम्बी सजाए भी होगी इसके बाद ही अक्तूबर के महीने में राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ का बीज बोया गया संघ के संस्थापक और आदि -सरसंघ -चालक डा केशव राम बलिराम हेडगेवार जी कोई मामूली व्यक्ति नहीं वर्ण करांतिकारी एवं क्रांतदर्शी भी थे बिस्मिल कि गिरफ्तारी केबाद साकार मौत देगी ही और यही हश्र बिस्मिल के सहयोगी आशफाक का भी निश्चित है और एक बात अब तक मुस्लिम लीग देश में जड़े जमा चुकी थी किन्तु उसका उद्देश्य ,,,,,,,??????
डा हेडगेवार ने सन १९२५ में दशहरे के दिन पांच लोगो को लेकर राष्ट्री स्वयं सेवक संघ कि सथापना कर डाली उद्देश्य उनका भी वही था जो बिस्मिल जी ने लिखा है कि क्रांति के लिए शिक्षा ज़रूरी है अतः युवको एकत्र करके, संगठित करके पहले उनमे देश -प्रेम, संगठन -शक्ति , और नैतिक बल पैदा करो बस यही सोच और प्रक्रिया अपनाकर उन्होंने बिना किसी प्रचार के यह शुभ कार्य आरम्भ किया यही संघ कि उत्पत्ति हुयी ,, वर्तमान वटवृक्ष जो सम्पूर्ण विश्व में अपनी जड़े जमाये हुए है कोई मामूली वृक्ष नहीं वरन बिस्मिल जी के विचारो का वट वृक्ष है जिसे हेडगेवार जी ने बिस्मिल जी के अन्तः कारन से निकलकर वीर प्रसूता भारतभूमि में बो दिया |,,,तथ्य के आभाव में हो सकता है कि ये बात कुछ भ्रमित करे परन्तु अगर हेडगेवार जी जीवित होते तो वे निश्चित ही यही कहते कि बिस्मिल कि वैचारिक पृष्ठ भूमि ही उनके संगठन का आधार है ,
एक और भी इसी कड़ी का मुख्य पहलू और सच्चाई है कि जिस प्रकार संघ कि स्थापना हुयी उसी प्रकार से फ्रंटियर में [बलूचिस्तान और पेशावर ] में खान अब्दुल गफ्फार खान ने खुदाई खिदमतगार नाम से लाल कुर्ती संगठन कि नीव राखी संघ के लोगो कि जिस प्रकार निश्चित वेश भूषा थी वेसे ही खुदाई खिदमत गारो कि भी वेश भूषा थी दोनों एक ही वैचारिक प्रष्ट भूमि पर कार्य करते थे दोनों हो निस्वार्थ भाव,, जन सेवा,, राष्ट्र सेवा कि भावना से परिपूर्ण थे
जिस प्रकार संघ बिस्मिल के विचारो का वट वृक्ष है उसी प्रकार खुदाई खिदमतगार आशफाक के ज़ज्बातो का दरियाई दरख्त है और दोनों के विषय में एक बात में और समानता है कि जैसे यहाँ कांगरेस ने संघ को मान्यता नहीं दी बल्कि साम्प्रदायिकता का आरोप लगाया और गालिया ही दी ठीक उसी प्रकार पाकिस्तान में खुदाई खिदमतगार को वहा कि सरकार ने कोई तवज्जो नहीं दी उलटे बादशाह खान को जेल में डाल दिया
तो क्या इन सब तथ्यों के परिपेक्ष्य में क्या संघ पर बार- बार दोषारोपण करना उचित है ?????????

अत्याचार की पराकाष्ठा,,,, निर्णय का समय,,,,,,,

यही दिन देखने को क्या चढ़े थे फांसी पर वो ,
सुबकते है या कभी फूट कर चिल्ला कर रोते है ||
प्रश्न भाषण का नहीं है , प्रश्न शासन का भी नहीं है ,प्रश्न उस व्यवस्था का है जिसे बैसाखियों के सहारे ढोयाजा रहा है |राष्ट्रीयता की बात करने वालो पर सरकार की किरपा की बजाय कोढ़े पड़ते हो |ऐसे देश में ,जहाँ शहीदों की बेवाये ,बहने और माताएं भूखी मरती हो ,उनके परिवार के लोग सडको पर अनाम अपना दम तोड़ते हो और बेईमान लोग अपना घर भर रहे हो , जन्म लेने से तो बेहतर है की स्वयम को या तो,,,,,,,,,,,
उन्ही शहीदों की तरह अपने गले में खुद फंदा डालकर समाप्त कर दिया जाये???????????
या फिर
शास्त्र उठाकर सबसे खुला संघर्ष किया जाए ???????????????