Thursday 19 April 2012

''साँसे''


चलती साँसों का नाम , जिंदगी
अविरल अबाध गति से चलती साँसे
कभी रुकती , कभी थकती
कबी हलकी , कभी गहरी साँसे
कभी संयोग ,कभी वियोग को
समेटती साँसे ,
सौन्दर्य का उपहास उड़ाती साँसे
पर जब कभी भूल से भी, भूल कर
रुकती साँसे ,
जीवन का अंत दिखाती साँसे ||--© माधवी

Monday 16 April 2012

''अधूरी आज़ादी''


शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले.
वतऩ पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा.....???????
कहाँ लग रहे है मेले उनकी चिताओ पे , उनकी शहीदगी का क्या कोई चिह्न शेष है...............??????
तीन चिताएं जली थी  ---प्रातः स्मरणीय वीर बलिदानियों की (1)भगतसिंह (2) सुखदेव (3)राजगुरू
क्या कोई याद रखता है?? ......सिवाय तब ,,जब बच्चो की फैंसी  ड्रेस हो या जब ऑफिस की छुट्टी हो....?????
हाँ अगर फिल्म समारोह का उद्घाटन हो या क्रिकेट मेच होने पर बड़े से बड़े अभिनेता नेता यहाँ तक की प्रधान मंत्री भी वहां पर जाकर हाथ हिलाते हुए दिख जायेगे ...मगर इन शहीदों की याद न तो किसी अभिनेता न नेता और न प्रशासन को ही रहती है ........न उनके शहीद स्थल पर कोई दिया जलता है न मोमबत्ती...
ऐसा क्यों ?????

क्युकी ये देश आज भी इण्डिया है ,,गुलाम है,और गुलाम देश के लिए स्वतंत्रता की आवाज़ उठाने वाले वहां के प्रशासको के द्वारा कभी सम्मानित नहीं किये जाते अपितु अपमानित ही किये जाते है सम्मान हमेशा तत्कालीन परिस्थितियों में हमेशा जयचंद और मानसिंह को ही मिला है .........
परन्तु जनता ,,,,क्या ऐसी स्वार्थी जनता के लिए क्रन्तिकारी शहीदों ने क्रांति की वेदी पर आत्माहुति दी ?????

क्या जनता का कोई कर्तव्य नहीं बनता की वे अपने ''प्रातः स्मरणीय'' पूर्वजो और देशभक्तों को न भुलाये वरन आने वाली पीड़ियों को इनकी शौर्य गाथाये ,क्रातिकारी ज़ज्बे जैसी अमूल्य धरोहर से अवगत कराये........जिससे शायद भविष्य में ही सही पर कोई आज़ाद. बिस्मिल,, मातंगिनी हाज़रा , सुभाषचन्द्र बोस जैसा अनमोल व्यक्तित्व जन्म ले और इस इण्डिया की ''अधूरी आज़ादी'' को ''पूर्ण स्वराज्य'' में बदलकर '' अखंड भारत '' के रूप में स्थापित करे .....||
वन्दे मातरम!!!
जय अखंड हिन्दू राष्ट्र!!!
© माधवी

Wednesday 11 April 2012

क्या फिर कोई वीर सावरकर जन्म लेगा ???????

"वीर सावरकर "जैसे अपने लहू की एक -एक कतरे से भारतभूमि का सिंचन करने वाले संयमी , देशभक्त, त्यागी जैसे जितने भी शब्दों से उनका गुणगान किया जाएकम है ,,क्योकि सर्वथा शब्दों की सीमाए रहेगी ही ,, जिन्होंने अपनी मृत्यु से पूर्व ये वसीयत लिखी कि...
१, मेरे श्राद्ध का धन बचाकर हिन्दू धार्मिक संस्थानों को दान में दे दिया जाए तथा मै अपने निजी कोष से पांच सह्रस्त्र रुपये शुद्धि आन्दोलन के लिए भेंट करता हूँ |

२ ,और मेरी मृत्यु का शोक प्रकट करने के लिए किसी तरह का बंद या हड़ताल न कि जाए ,,,मेरे मरण के शोक के लिए कोई भी व्यक्ति अपना कार्य बंद न करे ....
'वीर सावरकर''
क्रांतिकारियों के मुकुटमणि ,स्वतंत्रता सेनानियों के अग्रणी ,हिंदुत्व को शक्ति शाली एवं संगठित करने हेतु अछूतोद्धार जैसी महान सोच के लिए एवं कार्य करने वाले युगपुरुष ''वीर सावरकर'' की पुण्यतिथि पर शत- शत नमन ||| 

पर आज वीर सावरकर, बिस्मिल , मातंगिनी हाज़रा, सुखदेव जेसे देव तुल्य भारत भूमि के भक्त आज अपनी जन्म भूमि अर्थात भारत भूमि 
की दुर्दशा पर व्यथित हो रहे होंगे ,,रुदन कर रहे होंगे ,,,,,,,,,
क्युकी आज ये भ्रष्ट शासन, भ्रष्ट नेता अपने और अपने रिश्तेदारों कि आने वाली पचास पुश्तो की या शायद उससे भी अधिक की पीढियों चिंता करके भारत की धन - सम्पदा को विदेशी खातो और खजानों कि भेंट चढ़ा रहे है ,,,,,,,,,,

भारत माँ आज फिर एक बार ह्रदय की करुण पुकार से अपनी स्वतंत्रता के लिए अपने वैभव के लिए फिर एक'' बिस्मिल'', फिर एक ''सावरकर'' को पुकार रही है ,जो आज फिर उसके अस्तित्व, उसके गौरव ,उसकी सम्पदा को लौटा सके, बढ़ा सके और उसे फिर गरिमामयी शीर्षस्थ सिंहासन पर विराजित कर सके ,,,,,,,,,
क्या फिर कोई वीर सावरकर जन्म लेगा ????????????????
या

फिर यह वीर प्रसवनी भूमि ,वीरों के आभाव में बाँझ जैसी होकर रह जाएगी ??????????माधवी .

फिर क्यूँ बंद है ये मन के दरवाज़े????

आवाज़ निकलती है, मगर शब्द मौन है,

ह्रदय में स्पंदन है ,मगर भाव मौन है ,

मस्तिष्क में विचार उमड़ते है, मगर व्याख्या मौन है ,

बंद करे है आधुनिक मानव ,मन के दरवाज़े |

जहाँ से उठती है जहरीले सांप की फुफकारें ,

जहाँ से उठती है अंतरात्मा की चीखें ,

उन चीखों से हिल उठता है अंतर्मन ,

फिर क्यूँ बंद है ये मन के दरवाज़े????--© माधवी

''असत्य और सत्य ''

वृक्ष दिखता है मगर जड़ सत्य है ,
बारिश दिखती है मगर समंदर सत्य है,
शरीर दिखता है मगर आत्मा सत्य है,
चांदनी दिखती है मगर धूप सत्य है,
जीवन दिखता है मगर मृत्यु ही सत्य है ,
आकाश दिखता है मगर अनंत सत्य है ,
प्रकृति दिखती है मगर वो अदृश्य निर्माता सत्य है ,
हिमालय दिखता है   मगर शिव ही सत्य है ,,
तो  फिर इस असत्य की तृष्णा और खोज  क्यों ????? © माधवी

''जिंदगी''

जिंदगी क्या- क्या रंग दिखाती है ,
कभी ''धूप में छाँव'' और कभी'' छाँव में धूप'' दिखाती है |

जो कभी दो शब्द बोलने के काबिल  भी ना थे , है ,
वे आज अहम् में चूर, बड़प्पन दिखाने का दम भरते है |

जो कभी हवा में कागज के पन्नों की तरह फड़फडाते  थेऔर है ,
वे  ही आज भेड़ियों की तरह गुर्राहट करते है |

जो कभी पाँव की धूल के काबिल भी थे, है ,
वे आज मस्तक के तिलक का चावल बनने की जुर्रत करते है |

जो कभी दलदल में फंसे पत्थर थे, हमने निकाले.,.
तो वही आज हमें चोट पहुँचाने की हिमाकत करते है |

जिंदगी क्या- क्या रंग दिखाती है ,
कभी धूप में छाँव और कभी छाँव में धूप दिखाती हैमाधवी