Wednesday 22 June 2011

क्या अभी बलिदान बाकी है ???????????

१८४९ में पंजाब से सिख राज्य की समत होने से पूर्व गौ हत्या पर पूरी तरह प्रतिबन्ध था |अंग्रेजो का राज्य स्थापित होते ही स्थान स्थान पर बुचढ़खाने खुल गए और गौ मांस खुले आम बिकने लगा |अमृतसर के हरी मंदिर के निकट बूचड़ खाना खुलने से कुछ कूके बहुत उत्तेजित हो गए |कुछ कुको ने वहाँ पहुँच  कर कसाइयो की हत्या कर दी इसी प्रकार की घटना मलेर कोटला में घटित हुयी|........ भैणी साहब में एकत्रित कूकों को जब यह समाचार मिला की वहां एक थानेदार ने एक बैल की खुले आम हत्या करवाई है ,तो उनमे तीव्र उत्तेजना फ़ैल गयी |,,,,,,,,,,बाबा रामसिंह की आगया लिए बिना १४० उत्तेजित कूकों ने मलेर कोटला में बुचड़ो की बस्ती पर आक्रमण कर दिया |पुलिस मुठभेड़ में ७ कुके शहीद हो गए और शेष बंदी बना लिए गए...... |इनमे से ४९ को एक दिन और १७ को दूसरे दिन तोपों से उड़ा दिया गया |
यह था गुलाम भारत के शहीदों का इतिहास ,,,,,,, पर आज हम स्वतंत्र है लेकिन क्या हम हिन्दुओ की स्थिति में कुछ परिवर्तन आया है नहीं अभी हाल ही में मायावती सरकार ने कितने और बूचड़ खाने खोलने की अनुमति दे दी है | हिन्दू संस्कृति तो किसी भी जीव की हत्या की पक्षधर नहीं है,,,,,, पर फिर भी गौ को माँ के रूप में मानने  के कारण गौ हत्या के सख्त विरोधी है ,,,,पर इसका तो समर्थन कोई भी नहीं करेगा ,,,,,,वैसे  तो न जाने कितने संगठन टीवी पर और  सड़कों  पर प्रचार के लिए उतर आते है कि हिरन मत मारो,, चीता बचाओ ,,घड़ियाल खतरे में,, ,,लेकिन गौ हत्या के विषय में बोलने के लिए किसी संगठन के  मुँह  में जबान नहीं रहती,,,, कोई नेता नही आता ,,कोई मुम्बई का ढोंगी नहीं आता ,,,,,,,,,,,,,, हाँ अगर कोई भूले से आ भी  गया तो उसे साम्प्रदायिक ,भगवा ,हिन्दू आतंकी ,धार्मिक भेदभाव बढ़ाने वाला ,मज़हबी और न जाने कितने आरोपों से प्रताड़ित किया जाता है यातनाये और प्रतिबन्ध अलग से ,,,,,,,,
वेसे जालियावाला बाग़ हत्या कांड की पुनरावृत्ति तो अभी ४ तारीख की रात को देखीही थी ,,,,,,,,,
क्या अब फिर कुछ और कूकों को तोपों से भी उड़ाया जायेगा,,
क्या अभी बलिदान बाकी है ???????????

गद्दारों के सींग नहीं होते ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

 मनन- चिंतन , ज्ञान-  अध्धयन,, धर्म -नीति ,अच्छा- बुरा ,सही -गलत   ये सब विचार बिंदु हम हिन्दू पिछले ६३ वर्षो से कर रहे है क्या पाया ,,,,,,,,,,,जलालत ,,धर्म का उपहास, संस्कृति का लोप ,स्वार्थ, विदेशियों की लूट,,, अपने ही देश में सौतेला व्यव्हार ,, पाबंदियां  ,,,,, क्यों आखिर क्यों ????????
करीब १०० करोड़ लोग इन गिने चुने लोगो को सबक नहीं सिखा सकते क्या??? क्यों ??????
पर अब असर   आ रहा है  और दिखाई भी दे रहा है ४ तारीख के बाद से ,,,,,,,,,,,,, कि क्यों इन गद्दारों को  डायरिया हुआ है,,,, क्यों की ये  गद्दार है और ,,,,,,,,,,,,
गद्दारों के सींग  नहीं होते ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Friday 17 June 2011

राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के प्रति भारत के जन मानस में भ्रान्ति पूर्ण धारणा ,,,,,,,,,,

मै आजतक नहीं समझ पायी की राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के प्रति भारत के जन मानस में एक बहुत ही भ्रान्ति पूर्ण धारणा क्यों है कियह कट्टर हिन्दू और दुसरे धर्म विरोधी नीतियों का पोषक है जबकि अगर भुलावे की या राजनीती की परत हटा कर निष्पक्ष रूप से देखा जाएतो ,,,,,, संघ पंडित" राम प्रसाद बिस्मिल" एवं "अशफाक" के सयुक्त प्रयासों का परिणाम है बंगाल में राजनारायण बासु एवं ज्योतिन्द्र्नाथ ने मिलकर एक गुप्त अनुशीलन नामक समिति बनायीं थी इसमें व्यायाम आदि सिखाया जाता था ऐसे ही इस समिति का कार्य विस्तार हुआ और इसमे बिस्मिल और आशफाक ने कंधे से कन्धा मिलकर करांतिकारी कार्यो में सहयोग दिया था आशफाक अफगानिस्तान मूल के पठान थे जिनके पूर्वज वेदपाठी थे बिस्मिल मूलतः आर्यसमाजी थे इसी लिए शायद दोनों का खून एक साथ कार्य करने को प्रेरित करता रहाहोगा शायद ,,,,,,,, काकोरी कांड ९ अगस्त ,सन १९२५ को हुआ था २६ सितम्बर की रात को जब बिस्मिल गिरफ्तार हुए और उनके सभी साथियों को भी जेल में डाल दिया गया तब निश्चित हो गया था किअब ये क्रांतिकारी छूटने वाले नहीं है और इन्हें सजाए मौत तो होगी ही ,,लम्बी सजाए भी होगी इसके बाद ही अक्तूबर के महीने में राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ का बीज बोया गया संघ के संस्थापक और आदि -सरसंघ -चालक डा केशव राम बलिराम हेडगेवार जी कोई मामूली व्यक्ति नहीं वर्ण करांतिकारी एवं क्रांतदर्शी भी थे बिस्मिल कि गिरफ्तारी केबाद साकार मौत देगी ही और यही हश्र बिस्मिल के सहयोगी आशफाक का भी निश्चित है और एक बात अब तक मुस्लिम लीग देश में जड़े जमा चुकी थी किन्तु उसका उद्देश्य ,,,,,,,??????
डा हेडगेवार ने सन १९२५ में दशहरे के दिन पांच लोगो को लेकर राष्ट्री स्वयं सेवक संघ कि सथापना कर डाली उद्देश्य उनका भी वही था जो बिस्मिल जी ने लिखा है कि क्रांति के लिए शिक्षा ज़रूरी है अतः युवको एकत्र करके, संगठित करके पहले उनमे देश -प्रेम, संगठन -शक्ति , और नैतिक बल पैदा करो बस यही सोच और प्रक्रिया अपनाकर उन्होंने बिना किसी प्रचार के यह शुभ कार्य आरम्भ किया यही संघ कि उत्पत्ति हुयी ,, वर्तमान वटवृक्ष जो सम्पूर्ण विश्व में अपनी जड़े जमाये हुए है कोई मामूली वृक्ष नहीं वरन बिस्मिल जी के विचारो का वट वृक्ष है जिसे हेडगेवार जी ने बिस्मिल जी के अन्तः कारन से निकलकर वीर प्रसूता भारतभूमि में बो दिया |,,,तथ्य के आभाव में हो सकता है कि ये बात कुछ भ्रमित करे परन्तु अगर हेडगेवार जी जीवित होते तो वे निश्चित ही यही कहते कि बिस्मिल कि वैचारिक पृष्ठ भूमि ही उनके संगठन का आधार है ,
एक और भी इसी कड़ी का मुख्य पहलू और सच्चाई है कि जिस प्रकार संघ कि स्थापना हुयी उसी प्रकार से फ्रंटियर में [बलूचिस्तान और पेशावर ] में खान अब्दुल गफ्फार खान ने खुदाई खिदमतगार नाम से लाल कुर्ती संगठन कि नीव राखी संघ के लोगो कि जिस प्रकार निश्चित वेश भूषा थी वेसे ही खुदाई खिदमत गारो कि भी वेश भूषा थी दोनों एक ही वैचारिक प्रष्ट भूमि पर कार्य करते थे दोनों हो निस्वार्थ भाव,, जन सेवा,, राष्ट्र सेवा कि भावना से परिपूर्ण थे
जिस प्रकार संघ बिस्मिल के विचारो का वट वृक्ष है उसी प्रकार खुदाई खिदमतगार आशफाक के ज़ज्बातो का दरियाई दरख्त है और दोनों के विषय में एक बात में और समानता है कि जैसे यहाँ कांगरेस ने संघ को मान्यता नहीं दी बल्कि साम्प्रदायिकता का आरोप लगाया और गालिया ही दी ठीक उसी प्रकार पाकिस्तान में खुदाई खिदमतगार को वहा कि सरकार ने कोई तवज्जो नहीं दी उलटे बादशाह खान को जेल में डाल दिया
तो क्या इन सब तथ्यों के परिपेक्ष्य में क्या संघ पर बार- बार दोषारोपण करना उचित है ?????????

अत्याचार की पराकाष्ठा,,,, निर्णय का समय,,,,,,,

यही दिन देखने को क्या चढ़े थे फांसी पर वो ,
सुबकते है या कभी फूट कर चिल्ला कर रोते है ||
प्रश्न भाषण का नहीं है , प्रश्न शासन का भी नहीं है ,प्रश्न उस व्यवस्था का है जिसे बैसाखियों के सहारे ढोयाजा रहा है |राष्ट्रीयता की बात करने वालो पर सरकार की किरपा की बजाय कोढ़े पड़ते हो |ऐसे देश में ,जहाँ शहीदों की बेवाये ,बहने और माताएं भूखी मरती हो ,उनके परिवार के लोग सडको पर अनाम अपना दम तोड़ते हो और बेईमान लोग अपना घर भर रहे हो , जन्म लेने से तो बेहतर है की स्वयम को या तो,,,,,,,,,,,
उन्ही शहीदों की तरह अपने गले में खुद फंदा डालकर समाप्त कर दिया जाये???????????
या फिर
शास्त्र उठाकर सबसे खुला संघर्ष किया जाए ???????????????