Friday 17 June 2011

अत्याचार की पराकाष्ठा,,,, निर्णय का समय,,,,,,,

यही दिन देखने को क्या चढ़े थे फांसी पर वो ,
सुबकते है या कभी फूट कर चिल्ला कर रोते है ||
प्रश्न भाषण का नहीं है , प्रश्न शासन का भी नहीं है ,प्रश्न उस व्यवस्था का है जिसे बैसाखियों के सहारे ढोयाजा रहा है |राष्ट्रीयता की बात करने वालो पर सरकार की किरपा की बजाय कोढ़े पड़ते हो |ऐसे देश में ,जहाँ शहीदों की बेवाये ,बहने और माताएं भूखी मरती हो ,उनके परिवार के लोग सडको पर अनाम अपना दम तोड़ते हो और बेईमान लोग अपना घर भर रहे हो , जन्म लेने से तो बेहतर है की स्वयम को या तो,,,,,,,,,,,
उन्ही शहीदों की तरह अपने गले में खुद फंदा डालकर समाप्त कर दिया जाये???????????
या फिर
शास्त्र उठाकर सबसे खुला संघर्ष किया जाए ???????????????

1 comment:

  1. bahut hi badhiya udvodhan hai adhvi ji. desh ki bhrasht vyavashtha par karara prahar hai yah passage.

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