Friday 20 September 2013

आधुनिक भारत


जिंदा लाशों की ये बस्ती है, बस दो चार यहाँ जीते है, वे अनीति की भेंट चढ़ जाते है, मुर्दे जिन्दा बच जाते है | मुर्दों के मुर्दे पैदा होते है , मुर्दों की झूठी गाथाएं बनती है , सच्चों के कर्म भी छिपते है , कौन पूछता उन कर्मों को ?? नाम बदल जाते उन कर्मों पर | इसमुर्दों की बस्ती में , शोर है पर निनाद नहीं , गिद्धों की चीखे है पर . विजय का शंखनाद नहीं ? कौन करेगा इन मुर्दों में, प्राणों का संचार, कौन भरेगा इनके लहू में, जीवन का उबाल,??? क्या ये जिंदा मुर्दों की, बस्ती बदल जाएगी , मुर्दों की बस्ती में , या इस बस्ती से उठेगा, विजय का स्वर ...!!! ॐ की गुंजार ....ॐ की गुंजार.....!!!-माधवी

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