Monday 25 July 2011

वीर बलिदानिनी ज्योतिर्मयी गांगुली .....


भारत भूमि वीर- वीरांगनाओ की जन्म भूमि , कर्म भूमि है बहुत से वीरो ने अपने लहू से इस पवित्र भूमि को अलंकृत किया है अपने बलिदानों से सजाया है अपने त्याग से संवारा है ऐसी ही एक बलिदानिनी ""ज्योतिर्मयी गांगुली ''"श्री द्वारिकानाथ गांगुली की बेटी की भी बलिदान कथा विलक्षण है यों तो वे सतत ही आज़ादी की लड़ाई में भाग लेती रही परन्तु आज़ादी की पुकार पर अपनी सरकारी नौकरी को ठुकराकर ,सामाजिक कार्यो में भाग लेते हुए वे सन १९३० के आन्दोलन में शामिल हुयी ,,,,, आगे सन १९४५ के २१ नवम्बर को कलकत्ता में छात्रो का एक जलूस निकला तो ज्योतिर्मयी ने आगे जाकर जुलूस का नेतृत्व किया | इस जुलूस का कारण,, आज़ाद हिंद फौज के सैनिको की रिहाई की,, ब्रिटिश सरकार से मांग थी जिन पर कि विद्रोह का आरोप था वहां नारे गूंज रहे थे कि --
आज़ाद हिंद फौज के सैनिको को
रिहा करो !रिहा करो !
आज़ाद हिंद फौज का गीत भी चल रहा था और छात्र पूरी तन्मयता और जोश के साथ उसे गा रहे थे कि -----
कदम कदम बढ़ाये जा !
वतन के गीत गाये जा
यह जिन्दगी है कौम की ,
कौम पर लुटाये जा.......|
इस जलूस पर ब्रिटिश सैनिको ने गोली चलायी ,जिनमे एक छात्र घायल होकर शहीद हो गया | अगले दिन २२ नवम्बर १९४५ को ज्योतिर्मयी गांगुली उस शहीद छात्र का शव अपने कब्ज़े में लेकर शोक सभा करने एक जुलुस लेकर चली उस जुलुस का नेतृत्व भी वही कर रही थी ----इससे चिढ़कर उनके ऊपर एक फौजी ट्रक चढ़ा दिया गया जो उन्हें और जुलूस को रौंदता चला गया,, वे शहीद हुयी उन्होंने अपने बलिदान से मातृभूमि के पार्टी अपने कर्तव्य को पूरा करने का प्रयास किया और आगे आने वाली पीढियों को भारत भूमि की स्वतंत्रता एवं रक्षा का दायित्व सौपा ,,,,,,,पर ,,,,,पर ,,,,,
क्या हम उनके सौपे गए दायित्व को पूरा कर पा रहे है ??????
क्या हम उनका दिया गया बलिदान सार्थक कर पायेगे ???????
माधवी गुप्ता

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