जिंदगी क्या- क्या रंग दिखाती है ,
कभी ''धूप में छाँव'' और कभी'' छाँव में धूप'' दिखाती है |
जो कभी दो शब्द बोलने के काबिल भी ना थे , न है ,
वे आज अहम् में चूर, बड़प्पन दिखाने का दम भरते है |
जो कभी हवा में कागज के पन्नों की तरह फड़फडाते थे, और है ,
वे ही आज भेड़ियों की तरह गुर्राहट करते है |
जो कभी पाँव की धूल के काबिल भी न थे, न है ,
वे आज मस्तक के तिलक का चावल बनने की जुर्रत करते है |
जो कभी दलदल में फंसे पत्थर थे, हमने निकाले.,.
तो वही आज हमें चोट पहुँचाने की हिमाकत करते है |
जिंदगी क्या- क्या रंग दिखाती है ,
कभी धूप में छाँव और कभी छाँव में धूप दिखाती है |© माधवी
कभी ''धूप में छाँव'' और कभी'' छाँव में धूप'' दिखाती है |
जो कभी दो शब्द बोलने के काबिल भी ना थे , न है ,
वे आज अहम् में चूर, बड़प्पन दिखाने का दम भरते है |
जो कभी हवा में कागज के पन्नों की तरह फड़फडाते थे, और है ,
वे ही आज भेड़ियों की तरह गुर्राहट करते है |
जो कभी पाँव की धूल के काबिल भी न थे, न है ,
वे आज मस्तक के तिलक का चावल बनने की जुर्रत करते है |
जो कभी दलदल में फंसे पत्थर थे, हमने निकाले.,.
तो वही आज हमें चोट पहुँचाने की हिमाकत करते है |
जिंदगी क्या- क्या रंग दिखाती है ,
कभी धूप में छाँव और कभी छाँव में धूप दिखाती है |© माधवी
No comments:
Post a Comment