Wednesday 11 April 2012

''जिंदगी''

जिंदगी क्या- क्या रंग दिखाती है ,
कभी ''धूप में छाँव'' और कभी'' छाँव में धूप'' दिखाती है |

जो कभी दो शब्द बोलने के काबिल  भी ना थे , है ,
वे आज अहम् में चूर, बड़प्पन दिखाने का दम भरते है |

जो कभी हवा में कागज के पन्नों की तरह फड़फडाते  थेऔर है ,
वे  ही आज भेड़ियों की तरह गुर्राहट करते है |

जो कभी पाँव की धूल के काबिल भी थे, है ,
वे आज मस्तक के तिलक का चावल बनने की जुर्रत करते है |

जो कभी दलदल में फंसे पत्थर थे, हमने निकाले.,.
तो वही आज हमें चोट पहुँचाने की हिमाकत करते है |

जिंदगी क्या- क्या रंग दिखाती है ,
कभी धूप में छाँव और कभी छाँव में धूप दिखाती हैमाधवी

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